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Free Chemistry QBank for Polytechnic Exams

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Free Physics QBank for NEET-UG

NEET-UG I Physics QBank Welcome Aspirants !!! ScholarWorm welcomes our aspirants who are always hungry for more knowledge. We are here with our Free Physics QBank NEET-UG to help our students to practice regularly and perform at best of their ability in their exams. Instruction to Create Question Set :- 1. The Test Paper is AI generated.2. On clicking the button below the AI bot creates a set of 25 Questions from the pool of        questions that is being updated regularly by our expert faculties. 3. A Timer is set for each Test Set, once time is up the AI will automatically submit the           test.4. New Question Set can be created by going backwards and repeating the above steps.  Note :- Number of Questions and Timer is not customisable in Free QBanks.

Free Chemistry QBank for NEET-UG

NEET-UG I Chemistry QBank Welcome Aspirants !!! ScholarWorm welcomes our aspirants who are always hungry for more knowledge. We are here with our Free Chemistry QBank for NEET-UG to help our students to practice regularly and perform at best of their ability in their exams. Instruction to Create Question Set :- 1. The Test Paper is AI generated.  2. On clicking the button below the AI bot creates a set of 20 Questions from the pool of  questions that is being updated regularly by our expert faculties. 3. A Timer is set for each Test Set, once time is up the AI will automatically submit the test.  4. New Question Set can be created by going backwards and repeating the above steps.  Note :- Number of Questions and Timer is not customizable in Free QBanks.

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कल्पना सरोज | Kalpana Saroj

₹2 से दो हजार करोड रुपए तक की यात्रा। चल पड़ा जो राह में,मंजिल समझ लो पास है।रुक गया घबरा के,जो जिंदा नहीं बोला है।। कल्पना सरोज की कहानी थोड़ी फिल्मी है लेकिन 100% सच्ची है। कल्पना सरोज की कहानी उस दलित पिछड़े समाज के लड़की की कहानी है, जिसे जन्म से ही अनेक कठिनाइयों से जूझना पड़ा। समाज की अनेक उपेक्षा सहनी पड़ी। बाल विवाह का आघात झेलना पडा, ससुराल वालों का अत्याचार सहना पड़ा और ₹2 रोजाना से नौकरी तक करनी पड़ी। एक समय खुद के जीवन को खत्म करने के लिए उन्होंने जहर तक पी लिया। लेकिन आज वही कल्पना सरोज दो हजार करोड़ की कंपनी की मालकिन है। कल्पना सरोज का जन्म 1961 में महाराष्ट्र के अकोला जिले के छोटे से गांव बरखेड़ा के एक दलित परिवार में हुआ। कल्पना के पिता हवलदार थे और उनका वेतन मात्र ₹3000 था जिसमें कल्पना के दो भाई, तीन बहने, दादा-दादी, चाचा-चाची के पूरे परिवार का खर्च चलता था। उनका पूरा परिवार पुलिस क्वार्टर में रहता था। कल्पना पास के ही एक सरकारी स्कूल में पढ़ने जाया करती थी। वह पढ़ने में होशियार थी लेकिन स्कूल में उन्हें और बाकी दलित बच्चों को सबसे अलग बिठाया जाता था और उनसे बेहद ही हीन और उपेक्षा भरा व्यवहार किया जाता था। कल्पना जी अपने बचपन के बारे में बताते हुए कहती है। हमारे गांव में बिजली नहीं थी, कोई सुख सुविधाएं नहीं थी बचपन में स्कूल से लौटते वक्त गोबर उठाना, खेत में काम करना और चूल्हा जलाने के लिए लकड़ियां चुनना पड़ता था। कल्पना सरोज जिस समाज से हैं, वहां लड़कियों को जहर की पुड़िया की संज्ञा दी जाती थी। इसलिए उनके समाज में लड़कियों की शादी जल्दी करके परिवार का बोझ कम करने की कुप्रथा प्रचलित थी। कल्पना सरोज 12 साल की हुई सातवीं कक्षा में पढ़ रही थी तभी समाज के दबाव में आकर उनके पिता ने कल्पना की पढ़ाई छुड़वा दी और उसे उम्र में बहुत बड़े लड़के से बाल विवाह करवा दिया गया। शादी के बाद वह मुंबई चली गई जहां एक और कठोर जीवन और यातनाएं उनका पहले से ही इंतजार कर रही थी। कल्पना सरोज ने एक इंटरव्यू में बताया था कि “मेरे ससुराल वाले मुझे खाना नहीं देते थे, बालों को पकड़कर घसीट कर कभी मुझे मारते पीटते थे जानवरों से भी बदतर व्यवहार करते थे कभी खाने में नमक के बहाने से तो कभी कपड़े साफ नहीं भूलने के बहाने से हर कोई अपना हाथ मुझ पर साफ करता था”। यह सब सहते सहते कल्पना जी स्थिति इतनी बुरी हो चुकी थी कि जब 6 महीने बाद उनके पिता उनसे मिलने आए तो अपनी बेटी को देखकर वह हताश हो गए और उन्हें वापस अपने गांव ले आए। यहां उनकी मुश्किलें खत्म नहीं हुई जब शादी-शुदा लड़की मायके आ जाती है तो समाज से अलग ही नजर से देखता है। पड़ोस के लोग उन पर ताने कसते हैं और तरह-तरह की बातें करते हैं। पिता को दोबारा पढ़ाने की कोशिश की लेकिन इतनी छोटी उम्र में इतना दुख झेल चुकी कल्पना का मन ही नहीं लगता था। हर तरफ से मायूस कल्पना को लगने लगा कि जीवन जीना बेहद ही मुश्किल काम है और मर जाना आसान है। उन्होंने जहर की बोतल खरीदी और चुपके से अपनी बुआ के घर चली गई। बुआ जब चाय बना रही थी तभी कल्पना ने जहर की बोतल पी ली। बुआ जब चाय लेकर वापस आई तो चाय के कप छूटकर जमीन पर गिर गई उन्होंने देखा कि कल्पना के मुंह से झाग निकल रहा है। अफरातफरी में डॉक्टरों की मदद ली गई कल्पना का बचना मुश्किल लग रहा था। पर भगवान को कुछ और ही मंजूर था और उनकी जान बच गई इसके बाद उनका जीवन बदल गया और जिंदगी ने मुझे जीने का एक और मौका दिया। मुश्किलों से भाग जाना आसान होता है,हर पहलू जिंदगी का इंतिहान होता है।डरने वाले को मिलता नहीं कुछ जिंदगी में,जीतने वालों के कदम में जहान होता है।। कल्पना कहती है कि जब मैं बच गई तो सोचा जब कुछ किए बिना मारा जा सकता है तो इससे अच्छा है कुछ करके जिया जाए। उन्हें अपने अंदर एक नई ऊर्जा महसूस की। कल्पना अपने जीवन में कुछ करना चाहती थी इस घटना के बाद उन्होंने कई जगह नौकरी पाने की कोशिश की पर उनकी छोटी उम्र और शिक्षा के वजह से कोई भी काम नहीं मिल सका इसलिए उन्होंने काम की तलाश में मुंबई जाने का फैसला किया। 16 वर्ष की उम्र में कल्पना अपने रिश्तेदारों के यहां आ गई कल्पना सिलाई करना जानती थी इसलिए उनके रिश्तेदार कपड़े के मिल में काम दिलाने के लिए ले गए। उस दिन को याद करके कल्पना जी बताती है कि मैं मशीन चलाना अच्छे से जानती थी। पर ना जाने उस दिन मुझसे मशीन ही नहीं चला फिर मुझे धागे कातने का काम दे दिया गया। जिसके मुझे रोजाना ₹2 मिलते थे उन्होंने कुछ दिनों तक वहां धागे कातने का काम किया और जल्दी ही उन्होंने अपना आत्मविश्वास पा लिया और मशीन भी चलाने लगी जिसमें उन्हें महीने में ₹225 मिलने लगे इसी बीच किन्ही कारणों से कल्पना के पिता की नौकरी चली गई और अब कल्पना का पूरा परिवार मुंबई आकर उनके साथ रहने लगा। धीरे-धीरे सब ठीक हो रहा था तभी एक ऐसी घटना घटी जिससे उन्हें झकझोर कर रख दिया। उनकी बहन की एक गंभीर बीमारी से मौत हो गई। तब कल्पना को यह एहसास हुआ कि दुनिया में सबसे बड़ी कोई बीमारी है तो वह है गरीबी। उस दिन से उन्होंने यह निश्चय किया कि अपने जीवन में इस बीमारी को हमेशा के लिए खत्म कर देंगे उन्होंने अपने घर में कुछ सिलाई मशीन लगवा ली और अपने परिवार के सदस्यों के साथ मिलकर दिन में 16-16 घंटे काम करने लगी। उनकी कड़ी मेहनत की ये आदत आज भी बरकरार है सिलाई के काम से कुछ पैसे आ जाते थे। पर यह पैसे काफी नहीं थे इसलिए उन्होंने बिजनेस करने का सोचा। उनके इलाके में एक आदमी था जो लोन दिलवाने का काम करता था उस आदमी ने कहा अगर ₹50000 का लोन चाहिए

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